समाज के हाशिये पर जी रहे बच्चे भी बहुत सारी खुशियों के संगम की ताक में रहते है।
बस इनको मुस्कुराते खाते हुए देख मेरी आत्मा तृप्त हो जाती है।
ये जो कागज में लपेटकर,कान की बाली,पेन या डेरी मिल्क लाते है ना ये।मुझे लगता है कि मैं इस अनमोल प्रेम के बदले में क्या ही दे पाऊँगी इनको।
बस,अपने जन्मदिन की खुशियां, होटल में नही इनके साथ साझा करनी बेहतर लगती है हमको।
Love u बच्चों।
डॉ अंजलि केसरी