हम अक्सर देखते हैं कि सबकुछ होने के बाद भी लोग अपनी छोटी-छोटी कमियों को लेकर रोते रहते हैं, लेकिन वे कभी यह नहीं देखते कि दुनिया में और भी हैं जो बेहद अभावों में खुशी-खुशी जिंदगी जी रहे हैं। आज कहानी ऐसे ही एक गरीब लड़के की है।वह गरीब परिवार में जन्मा ऐसा बालक था, जिसके माता-पिता मजदूरी करके पेट पालते थे। जब माता-पिता काम पर जाते तो वह उन्हीं निर्माणाधीन इमारतों के आसपास खेलता रहता था। उसके पास उसी के जैसे अन्य बच्चे भी शामिल हो जाते थे।एक बार की बात है। काफी दिन से एक बड़ी इमारत का काम चल रहा था। वहां रोज मजदूरों के छोटे-छोटे बच्चे एक दूसरे की शर्ट पकड़कर रेल-रेल का खेल खेलते थे। रोज कोई बच्चा इंजन बनता और बाकी बच्चे डिब्बे बनते थे। इंजिन और डिब्बे वाले बच्चे रोज बदल जाते, पर केवल चड्डी पहना एक छोटा बच्चा हाथ में रखा कपड़ा घुमाते हुए रोज गार्ड बनता था।एक दिन एक शख्स ने पूछ लिया। उसने गार्ड बनने वाले बच्चे को पास बुलाकर पूछा, तुम रोज गार्ड बनते हो। तुम्हें कभी इंजन, कभी डिब्बा बनने की इच्छा नहीं होती?इस पर वो बच्चा बोला- बाबूजी, मेरे पास पहनने के लिए कोई शर्ट नहीं है। तो मेरे पीछे वाले बच्चे मुझे कैसे पकड़ेंगे और मेरे पीछे कौन खड़ा रहेगा? इसीलिए मैं रोज गार्ड बनकर ही खेल में हिस्सा लेता हूं।बच्चे की यह बात हमें जीवन का यह सबक सिखाती है कि जीवन कभी भी परिपूर्ण नहीं होता। उसमें कोई न कोई कमी जरूर रहेगी, लेकिन हमें हर हालात का सामना खुशी-खुशी करना चाहिए। वह बच्चा मां-बाप से गुस्सा होकर रोते हुए बैठ सकता था। लेकिन ऐसा न करते हुए उसने परिस्थितियों का समाधान ढूंढा। ज़िन्दगी तो बीत ही रही है,प्रयत्न करके भी अच्छे सेवाकार्यो के लिये,समय निकाल लीजिये,वर्ना पीछे पछताना पड़ेगा।
अंजलि विशाल
विशाल संकल्प